सूख कर सारे आंसू पत्थर हो जाए इतना भी नहीं रुलाना चाहिए बंजर हो जाए ज़मीन दिल की आंखे छोड़ ही दे, ख़्वाब कोइ भी बुन ना सब खराशें फ़िर अपनी अपनी सी लगने लगे बातों से ज़्यादा खामोशियों में जी लगने लगे अंधेरे दे सुकून बांहे फैला कर, बहरूपिया सी रोशनी ठगने लगे नींद ना आए मौत की चाह में, ये आंखे दौर कई सदिया फ़िर जगने लगे फ़िर कोई आह,होठों पे ना फर्द हो सके ऐसा बिखरे की उम्मीदें सब सर्द हो सके किनारे ले जा कर कोई मासूम नहीं डुबाना चहिए मरहमो का आसरा दे कर खंज़र नहीं चुभाना चहिए और, क़ाबिल ए गौर हैं,ज़रा सुन तो लो कोई दर्द फ़िर कभी चोट ही ना दे पाए इतना भी किसी का दिल नही दुखाना चहिए... ©ashita pandey बेबाक़ #Bhai_Dooj शायरी हिंदी हिंदी शायरी 'दर्द भरी शायरी'