जिसे भर कर बांहों में हम लिपट जाया करते थे उसके हीं आगोस में हम सिमट जाया करते थे बड़ी मसरूफ रहती है आज कल अब गैर की बांहों में जिसे ता-उम्र रखना ख्वाइस था अपनी पनाहों में जिसे भर कर बांहों में हम लिपट जाया करते थे उसके हीं आगोस में हम सिमट जाया करते थे बड़ी मसरूफ रहती है आज कल अब गैर की बांहों में जिसे ता-उम्र रखना ख्वाइस था अपनी पनाहों में