ज़िंदगी हमने खुद बना रखा है तमाशा, उम्मीद को ना थाम ओढ़ के रखी है निराशा। अपने खुद पर नहीं है हमको विश्वास, करते रहते हैं हम दूसरों से ही आशा। । तमाशा । मिले कभी आशा तो कभी निराशा, ये ज़िंदगी भी है इक अजब तमाशा। ख़ुद-नुमाई न कर इतना भी ज़्यादा, इंसाँ! तू है बस पानी में एक बताशा। ख़ुद-नुमाई - आत्म प्रदर्शन