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डरती हुं मैं घनघोर घटा के, काले काले बादल से, जब ब

डरती हुं मैं घनघोर घटा के,
काले काले बादल से,
जब बिजली गरजती हैं,
मैं मन ही मन डरती हुं,
ये भी सच हैं,
खुले आसमान तले,
बारिश में भींगने से डरती हूँ,
पर जब बारिश रुक जाती हैं,
पेड़ों और फूल पत्तियों पर,
सच मानों मैं खो सी जाती हूँ,
कुदरत के ऐसे प्रेम को देखकर।
अचरज में मैं रहती हूँ,
बारिश का आलिंगन,
जब भी धरा से देखती हूँ।
जिन बादल के काले रंग से मैं डरती हूँ,
वो ही रंग इतना करूणा बरसाते हैं,
रंग बिरंगी फूल,
 इस बारिश की वजह से हम देख पाते।
बिजली के जिस गर्जन से मेरा मन कम्पित होता,
उसकी आवाज धरा का मन प्रफुल्लित होता हैं,
धरती से मिलन के लिए,
ये अम्बर कितना व्याकुल होता है,
गिरता हैं धरा के लिए,
ये प्रेम कितना पावन लगता है। #DearZindagi
डरती हुं मैं घनघोर घटा के,
काले काले बादल से,
जब बिजली गरजती हैं,
मैं मन ही मन डरती हुं,
ये भी सच हैं,
खुले आसमान तले,
बारिश में भींगने से डरती हूँ,
पर जब बारिश रुक जाती हैं,
पेड़ों और फूल पत्तियों पर,
सच मानों मैं खो सी जाती हूँ,
कुदरत के ऐसे प्रेम को देखकर।
अचरज में मैं रहती हूँ,
बारिश का आलिंगन,
जब भी धरा से देखती हूँ।
जिन बादल के काले रंग से मैं डरती हूँ,
वो ही रंग इतना करूणा बरसाते हैं,
रंग बिरंगी फूल,
 इस बारिश की वजह से हम देख पाते।
बिजली के जिस गर्जन से मेरा मन कम्पित होता,
उसकी आवाज धरा का मन प्रफुल्लित होता हैं,
धरती से मिलन के लिए,
ये अम्बर कितना व्याकुल होता है,
गिरता हैं धरा के लिए,
ये प्रेम कितना पावन लगता है। #DearZindagi
dipika1220323181690

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