डिस्पोजल मैं डिस्पोजल हूं, मैं इस्तेमाल के बाद क्यों? सबकी आंखों से ओझल हूं। मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं। यह मेरा सवाल नहीं,मेरे ख्यालात नहीं, मेरी पीड़ा,मेरा दर्द नहीं,ये तो बिल्कुल सच है, मैं निरर्थक बहता,आंखों का खारा जल हूं। मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं। मैं तुम्हारी गरज में, उपभोग के समय तुम्हारी, शोभा,शानो-शौकत और शोहरत बन जाती हूं। आड़े नहीं आती,मेरी शक्ल-सूरत,रंग-रूप, यहां तक कि मेरी जाति मेरा धर्म सब, सबकुछ भूल जाते हो तुम,भूल जाते हो अपनी मर्यादा भी। कोई भी रिश्ता नहीं रोकता तुम्हारा रास्ता, सब! सबकुछ ताक पर रखकर तुम वहशीपन पे उतरकर, पागल दरिंदे की तरह नोचते हो मेरा जिस्म, करते हो मेरा शिकार और सेवन, बर्बाद कर देते हो मेरी जिंदगी,उजड़ देते हो मेरा सब संसार, मैं तुम्हारे द्वारा किया हुआ प्रेम छल हूं। मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं। तुम अपने आगोश में समा लेना चाहते हो मेरा बदन, मेरा हर अंग तुम्हें देता है, खुशी-आनन्द कि अलग-अलग अनुभूति, चखना चाहते हो मेरे हर हिस्से को, मिटाना चाहते हो अपनी हवस की भूख और तड़प, मशलकर-रगड़कर मेरा शरीर, पाना चाहते हो देहिक सुख, करना चाहते हो बस मेरा शिकार,सेवन! पल भर में करके अपनी भूख को शांत, बन जाते फिर से मर्यादा पुरुष, मेरे काल्पनिक सपने टूटकर बिखर जाते हैं, जब देखती हूं तुम्हारी नजरों में,मैं कुछ नहीं, मैं तुम्हारे लिए कुलटा और बीता हुआ कल हूं। मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं,हां मैं डिस्पोजल हूं। सरदानन्द राजली दिनांक-06-05-2020 9416319388 डिस्पोजल मैं डिस्पोजल हूं, मैं इस्तेमाल के बाद क्यों? सबकी आंखों से ओझल हूं। मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं,मैं डिस्पोजल हूं। यह मेरा सवाल नहीं,मेरे ख्यालात नहीं,