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आज फिर जगमगा उठा है आलम, फिर अलविदा होगे ये लम्हे

आज फिर जगमगा उठा है आलम,
फिर अलविदा होगे ये लम्हे ये पल,
सालो बीत चुके है ,
प्रेम में डूबी हुई  अमृता ,
फिर भी अब के समय में,
नही मिलता कोई इमरोज।
ना दुनियादारी का नाम,
फिर भी एक छत में, एक साथ,
जीवन बिताए वो अमृता, इमरोज।
आज कल के प्रेम खोखले ,
हवस से भरे पड़े,
थोड़े पलो में बिखरते हुए।
ये प्रेम नही है!
प्रेम तो था , अमृता इमरोज

©ADV.काव्या मझधार( DK) महाकाल उपासक
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