एक वो खामोशी अब मैं बयान नहीं कर सकती,वो रात तो बीत गई कुछ अरमानों की,सिर्फ जाहिर नहीं कर सकती एक वो सांस जो थमती नहीं, अब दोबारा जी नहीं सकती एक वो बात है दोबारा इस जहन में धुंदला गए हैं कुछ पन्ने इश्क़ के पर मिटा नहीं सकती रात वो बीत गई, कुछ पल अभी कैद हैं, खामोश मेरा अब अंदाज़ है, हर्फ अब बयान नहीं कर सकती । वो बेहिसाब नफरत थोडी काम जरूर हो गई है उस रात के बाद पर नफरत की आग कभी थमा नहीं करती में चुप थी उस रात पर इन निशानों को खुदसे जुदा नहीं कर सकती इश्क की चादर कफ़न में बदलो या चाहे बदल दो इसे मेरे "janaze"की चादर में रूठ तो जाऊंगी पर खुदको तुमसे रिहा नहीं कर सकती "पीर कहूं तुम्हे या कहूं अल्लाह की इबादत तू साईं भी है मेरा तू ही श्री कृष्ण, सुबह की रोशनी और वो सरफरोशी रात अब मैं खुद से जुदा नहीं कर सकती दूर जरूर हूं तुझसे पर खुदको तुझसे रिहा नहीं कर सकती @aafeemi #chai ki pyali with some memories