तेरे मुजाहिरा-ए-गेसू करती बेदार दिल-ए-तम्मना ,चश्म-ए-लाली रंगीन चश्म-ए-आँब बहाती है। क्या कहेंगे लोग कर विस्मृत हौसला-ए-जाम चश्म से आफ़ताब-ए-रस का सुरा-ए-पैमाना पिलाती है। 🎀 Challenge-334 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 20 शब्दों अथवा 2 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।