मेरे हाथों में खंज़र है पर निशाना नहीं, मेरे अपने ही घर का कोई ठिकाना नहीं। मैंने भी देखा है इस जहां को आज-माकर, साथ दे कोई किसी का ऐसा ज़माना नहीं। ©prakash Jha मेरे हाथों में खंज़र है पर निशाना नहीं, मेरे अपने ही घर का कोई ठिकाना नहीं। मैंने भी देखा है इस जहां को आज-माकर, साथ दे कोई किसी का ऐसा ज़माना नहीं। अपने दिल में दिल का दर्द छुपा रखा है, मेरा दिल जिस्से बहले ऐसा बहाना नहीं।