ज़ख्म दिलों के हमने अपने, छुपा कर रखें है। राज़ को राज़ ही बनाकर, उसको दफ़न रखे है। कोई समझ ना सके, है तकलीफ़ मुझे कितना, महफिलों में भी होठों पे मुस्कान बनाए रखे है। कैसे बताएँं, मिला है जिन्दगी से सितम कितने, निज ख्वाहिशों को हमने, समेटकर ही रखे है। चाहत नही अब, मैं भी कभी आशियाँ बनाऊँ, कुछ इस क़दर आँधियों से चोट खाए बैठे है।। ऐसे ही ख़ामोश नही हुए है, लब हमारे साहिब, अब हम तो संगीत से ही, दिल लगाए बैठे है।। ना मिला सुकूँ मुझे कही, ये रंग भरी दुनियाँ में, प्रकृति के ही संग हमने अब, रास रचाए बैठे है। अब नही अपना पूछता है कोई, खैरियत हमारी, कुछ इस क़दर लोगों की आँखों में, चुभे बैठे है।। बाहर चमक चाँदनी, पर छाया पलकों तले अँधेरा, कालिमा में ही अपनी उजड़ी दुनियाँ बनाए रखे है। नही फिकर किसी को हमारी, सब मुँह फेर लेते है, हम भी स्वयं में हर्षोत्फुल्ल रह कर, खोए बैठे है।। ♥️ Challenge-962 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।