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सागर भी करीब थे , तालाब भी करीब थे , पी नहीं सकता

सागर भी करीब  थे , तालाब भी करीब थे ,
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
मर चुकी थी चाह और खो  चुकी थी कामना ,
क्या बताऊ  आपको कैसा मेरा तक़दीर थे !!
पी नहीं सकता था ,मेरे प्यास भी अजीब  थे .....
पाने की होड़ में बढ़ रही थी परेशानियां ,
आ चुके  थे बोझ जा चुकी थी नादानियाँ  !
गरीबी की मार थी , लोगों के थे अटकलें ,
लोग सब फले-फुले थे , हम बस फ़क़ीर थे......
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
झेलने थे लाख ताने , सह लिए थे यातनाएँ ,
कोई कहता पगला है ये , कोई कहते हैं दीवाने !
बाग की फूलों के मालिक की तरह थी बेड़ियाँ  ,
देखने के फुल खिले थे , पर  काँटे से चिर  थे !!
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास भी अजीब  थे .....
                    :-  साग़र सागर भी करीब  थे , तालाब भी करीब थे ,
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
मर चुकी थी चाह और खो  चुकी थी कामना ,
क्या बताऊ  आपको कैसा मेरा तक़दीर थे !!
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे .....
पाने की होड़ में बढ़ रही थी परेशानियां ,
आ चुके  थे बोझ जा चुकी थी नादानियाँ  !
गरीबी की मार थी , लोगों के थे अटकलें ,
सागर भी करीब  थे , तालाब भी करीब थे ,
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
मर चुकी थी चाह और खो  चुकी थी कामना ,
क्या बताऊ  आपको कैसा मेरा तक़दीर थे !!
पी नहीं सकता था ,मेरे प्यास भी अजीब  थे .....
पाने की होड़ में बढ़ रही थी परेशानियां ,
आ चुके  थे बोझ जा चुकी थी नादानियाँ  !
गरीबी की मार थी , लोगों के थे अटकलें ,
लोग सब फले-फुले थे , हम बस फ़क़ीर थे......
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
झेलने थे लाख ताने , सह लिए थे यातनाएँ ,
कोई कहता पगला है ये , कोई कहते हैं दीवाने !
बाग की फूलों के मालिक की तरह थी बेड़ियाँ  ,
देखने के फुल खिले थे , पर  काँटे से चिर  थे !!
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास भी अजीब  थे .....
                    :-  साग़र सागर भी करीब  थे , तालाब भी करीब थे ,
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे !
मर चुकी थी चाह और खो  चुकी थी कामना ,
क्या बताऊ  आपको कैसा मेरा तक़दीर थे !!
पी नहीं सकता था , मेरे प्यास  भी अजीब  थे .....
पाने की होड़ में बढ़ रही थी परेशानियां ,
आ चुके  थे बोझ जा चुकी थी नादानियाँ  !
गरीबी की मार थी , लोगों के थे अटकलें ,

सागर भी करीब थे , तालाब भी करीब थे , पी नहीं सकता था , मेरे प्यास भी अजीब थे ! मर चुकी थी चाह और खो चुकी थी कामना , क्या बताऊ आपको कैसा मेरा तक़दीर थे !! पी नहीं सकता था , मेरे प्यास भी अजीब थे ..... पाने की होड़ में बढ़ रही थी परेशानियां , आ चुके थे बोझ जा चुकी थी नादानियाँ ! गरीबी की मार थी , लोगों के थे अटकलें ,