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फाँसी कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते

फाँसी
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।
दोनो के बीच में जब आएँ तीसरा, जीते जी बन जाते हैं स्वर्गवासी।।

पत्नी को ना हो अभिमान पति से ज्यादा अपनी सुरत पर,
पल में मिट जाती है हस्ती, ध्यान धरे ना जब कोई मुरत पर।

पति और पत्नी दोनो हैं समान, ना कोई राजा, ना है दासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

राजा बनेंगा वहीं पति, जिसकी पत्नी ना बनाएँ उसे नौकर,
गुलाम बनाएँ अपने पति को, खाएँ फिर गैरों की ठोकर।

पति के सम्मान की खातिर, पत्नी बन जाएँ, रानी झाँसी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

पति ना कभी भूल करे, पत्नी को समझने की नौकरानी,
रखे चारदीवारी में पत्नी को, माने ना उसे घर की पटरानी।

नजर डालता फिरे परायी नार पर, बनाके पत्नी को दासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

बेटी समान बहु को माने, सास बन कर ना करे करनी,
दोनो के विवाद में फँस ना जाएँ, किसी की भी जननी।

सास बन जाएँ माँ, माँ बन जाएँ सास, रहे ना उनमें उदासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी। फाँसी
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।
दोनो के बीच में जब आएँ तीसरा, जीते जी बन जाते हैं स्वर्गवासी।।

पत्नी को ना हो अभिमान पति से ज्यादा अपनी सुरत पर,
पल में मिट जाती है हस्ती, ध्यान धरे ना जब कोई मुरत पर।

पति और पत्नी दोनो हैं समान, ना कोई राजा, ना है दासी।
फाँसी
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।
दोनो के बीच में जब आएँ तीसरा, जीते जी बन जाते हैं स्वर्गवासी।।

पत्नी को ना हो अभिमान पति से ज्यादा अपनी सुरत पर,
पल में मिट जाती है हस्ती, ध्यान धरे ना जब कोई मुरत पर।

पति और पत्नी दोनो हैं समान, ना कोई राजा, ना है दासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

राजा बनेंगा वहीं पति, जिसकी पत्नी ना बनाएँ उसे नौकर,
गुलाम बनाएँ अपने पति को, खाएँ फिर गैरों की ठोकर।

पति के सम्मान की खातिर, पत्नी बन जाएँ, रानी झाँसी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

पति ना कभी भूल करे, पत्नी को समझने की नौकरानी,
रखे चारदीवारी में पत्नी को, माने ना उसे घर की पटरानी।

नजर डालता फिरे परायी नार पर, बनाके पत्नी को दासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।

बेटी समान बहु को माने, सास बन कर ना करे करनी,
दोनो के विवाद में फँस ना जाएँ, किसी की भी जननी।

सास बन जाएँ माँ, माँ बन जाएँ सास, रहे ना उनमें उदासी।
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी। फाँसी
कभी पति और कभी पत्नी, ना जाने क्यों लगा लेते है फाँसी।
दोनो के बीच में जब आएँ तीसरा, जीते जी बन जाते हैं स्वर्गवासी।।

पत्नी को ना हो अभिमान पति से ज्यादा अपनी सुरत पर,
पल में मिट जाती है हस्ती, ध्यान धरे ना जब कोई मुरत पर।

पति और पत्नी दोनो हैं समान, ना कोई राजा, ना है दासी।
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R.S. Meena

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