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सफर जिंदगी का सफर जिंदगी का अधूरा रह गया क्या अब

सफर जिंदगी का

सफर जिंदगी का अधूरा रह गया
 क्या अब थम जाएगी जिंदगी मेरी 
क्या तेरे बगैर माँ,कट पायेगी मेरी जिंदगी 
वक्त ठहरता नहीं है किसी का
 मगर इन दिनों ठहर गई है जिंदगी मेरी
 ढूंँढ़ता हूंँ कण-कण में, तुझको ऐ मेरी मांँ 
मगर दिखती नहीं हो, कहीं भी मेरी माँ
 ढूंँढ कर चारों तरफ परेशान हो जाता हूंँ
 तब कहीं जाकर एकांत में रो लेता हूंँ
सिर्फ सपनों में आकर दुलारती हो मेरी माँ
 फिर विष्णुधाम में वापस चली जाती हो माँ

©DR. LAVKESH GANDHI
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