नफरत की आग मिसरा.."शहर सुनसान है किधर जायें" वक़्त की गर्दिशें ठहर जायें!!! तेरी ज़ुल्फ़ें अगर भिखर जाएँ शहर-ए-जाना से कूच कर जायें गोया हम जीते जी ही मर जायें जो गदा हैं तुम्हारी चौखट के!!! मागने क्यों वो दरबदर जाये!!!! नाम हो जाये जिससे दुनिया में!! हम कोई काम ऐसा कर जायें!!! बुझ गई आग नफरतों की मगर!! "शहर सुनसान है किधर जायें"!!!!