क़िस्मत की डगर और हक़ीक़त का सफ़र हम बखूबी हैं जानते, सूर्य की उगती उज्ज्वलता हो या अस्त होते सूर्य का पैग़ाम हम बखूबी हैं जानते, धूल में उड़ती धूमिल सी उम्मीदें ही सही हक़ तो अपना भी है बनता, माना दूरी बहुत है तय करनी मगर हार जाए हम ऐसा हुनर हमारा कमजोर है भी नहीं, जानतें हैं हम पथरीला है सफ़र गिरेंगे जरूर, मगर कोशिश करने से न घबरायेंगे हम, कहता है सफ़र चलते जा रूकने की तो न बिल्कुल सोच हो जा तैयार बस कदम दर कदम बढ़ाते जा,रूकने की बिल्कुल न सोच, ♥️ Challenge-915 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।