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तुम ही बताओ... मुड़ जाऊं या उलझनों को मोड़ दूं दिन

तुम ही बताओ...
मुड़ जाऊं या
उलझनों को मोड़ दूं
दिन रात के फेरो में खामोशियां बढ़ती जा रही है
बढ़ते हर दिन के साथ 
तकलीफियां बढ़ती जा रही है
ये उखड़ापन तुम्हारा
पल पल उलझाता जा रहा है
अब तुम ही बताओ
खुद बदलोगे
या उम्मीद का दामन छोड़ दूं
एक वक्त था 
कहती थी सब संभाल लूंगी
एक वक्त है
सोचती हूं कैसे कर पाऊंगी
अजीब कश्मश में ठहरा दिया है
अब तुम ही बताओ
बदल जाओगे
या प्यार के वो सारे एहसास छोड़ दूं
अपनेपन की हर दीवार तोड दूं
बदलोगे तुम
या इस दर्द से नाता जोड़ लूं

©Neha Bhargava (karishma)
  #feeling of alonless

#Feeling of alonless #Poetry

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