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मौत की आंखों में भी पानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से

मौत की आंखों में भी पानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ।कहाँ शौकीन हूँ मैं इन महलो का संगमरमर सी दीवारों का। गलियों में तेरे दिल की मैं तो बस एक झोपड़ी बनानी चाहता हूँ। न टूटे दिल कभी किसी अपने का मेरी बात से। न छुटे हाथ कभी किसी अपने का मेरे हाथ से। न आये गुरुर मुझे कभी अपनी जात से। छोटी चाहता हूँ मगर मैं ऐसी ज़िन्दगानी चाहता हूँ।मौत की आंखों में भी पानी चाहता हूँ।  और ख़त्म न हो जो कभी क़यामत के आने पे भी मैं दुआओं की ऐसी दौलत कमानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ। वीरान हो चुके है जो टूटे दिल बरसो पहले। मोहब्बत की एक शम्मा मैं उनमे जलानी चाहता हूँ।कुछ यूं मैं मोहब्बत की एक बारिश करानी चाहता हूँ।मैं नफ़रत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूं।मैं फ़िज़ाये इस जहाँ में मोहब्बत वाली चलानी चाहता हूँ।मैं नफरत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूँ।कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ।कहाँ भागते हो इस बेवफा दुनिया के पीछे एक छोटा सा कफन दो गज़ ज़मीन है मंज़िल तुम्हारी। बात कड़वी है मगर बतानी चाहता हूँ।मैं नफरत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ। # ख्वाहिश एक ऐसी भी..@j.a
मौत की आंखों में भी पानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ।कहाँ शौकीन हूँ मैं इन महलो का संगमरमर सी दीवारों का। गलियों में तेरे दिल की मैं तो बस एक झोपड़ी बनानी चाहता हूँ। न टूटे दिल कभी किसी अपने का मेरी बात से। न छुटे हाथ कभी किसी अपने का मेरे हाथ से। न आये गुरुर मुझे कभी अपनी जात से। छोटी चाहता हूँ मगर मैं ऐसी ज़िन्दगानी चाहता हूँ।मौत की आंखों में भी पानी चाहता हूँ।  और ख़त्म न हो जो कभी क़यामत के आने पे भी मैं दुआओं की ऐसी दौलत कमानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ। वीरान हो चुके है जो टूटे दिल बरसो पहले। मोहब्बत की एक शम्मा मैं उनमे जलानी चाहता हूँ।कुछ यूं मैं मोहब्बत की एक बारिश करानी चाहता हूँ।मैं नफ़रत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूं।मैं फ़िज़ाये इस जहाँ में मोहब्बत वाली चलानी चाहता हूँ।मैं नफरत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूँ।कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ।कहाँ भागते हो इस बेवफा दुनिया के पीछे एक छोटा सा कफन दो गज़ ज़मीन है मंज़िल तुम्हारी। बात कड़वी है मगर बतानी चाहता हूँ।मैं नफरत को इस जहाँ से पूरी तरह मिटानी चाहता हूँ। कुछ इस तरह से मैं ज़िन्दगी बितानी चाहता हूँ। # ख्वाहिश एक ऐसी भी..@j.a