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मेहंदी मिटाती है नक्श-ए-पा लकीर के... किसी की कोख

मेहंदी मिटाती है नक्श-ए-पा लकीर के...
किसी की कोख मॆं पल रहॆ हैं शौक़ फ़क़ीर के..।

और हार-जीत से कब का निकल आया हूँ मैं...
आज भी सबकुछ दायरे मॆं हैं वज़ीर के..।

कोई रिश्ते से आपका बदन खोद रहा है...
हमने पढॆ़ थे कभी जिस पे दोहे कबीर के..।

रोज कोई न कोई तुझको खरीद ही लेगा...
देखो तो कितने दाम गिर गये हैं शरीर के..।

आज तलक मेरे हिस्से की रोटी ग़ायब है...
पनीर मॆं ढूँढ रहा हूँ मैं टुकडॆ़ पनीर के..।

जब कोई हंस रहा है रोते हुए भी ‘ख़ब्तुल’
ये तो सरासर दो निशाने है एक तीर के..।

                       - ख़ब्तुल
                    संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 तीर
मेहंदी मिटाती है नक्श-ए-पा लकीर के...
किसी की कोख मॆं पल रहॆ हैं शौक़ फ़क़ीर के..।

और हार-जीत से कब का निकल आया हूँ मैं...
आज भी सबकुछ दायरे मॆं हैं वज़ीर के..।

कोई रिश्ते से आपका बदन खोद रहा है...
हमने पढॆ़ थे कभी जिस पे दोहे कबीर के..।

रोज कोई न कोई तुझको खरीद ही लेगा...
देखो तो कितने दाम गिर गये हैं शरीर के..।

आज तलक मेरे हिस्से की रोटी ग़ायब है...
पनीर मॆं ढूँढ रहा हूँ मैं टुकडॆ़ पनीर के..।

जब कोई हंस रहा है रोते हुए भी ‘ख़ब्तुल’
ये तो सरासर दो निशाने है एक तीर के..।

                       - ख़ब्तुल
                    संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 तीर