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मेरे रोम-रोम बसे हुए हो, गोविंदा तुझसे गहरा नाता,

मेरे रोम-रोम बसे हुए हो, 
गोविंदा तुझसे गहरा नाता,
ऐसा लगाव जो बढता जाता 
क्यों है ऐसा समझ ना पाता,
मुख तो मौन है,भाव बताता,
सुध बुध खोकर झूमता गाता 
तू ही सबको सांस बाँटता,
तू ही इन्हें रखाता 
इसी लिए मैं बेपरवाह हो,
वृन्दावन तक आता ।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  लल्ला की छठी

लल्ला की छठी #कविता

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