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ढल जाती है वो, हर साँचे में उस पिघले हुए मोम की तर

ढल जाती है वो,
हर साँचे में
उस पिघले हुए मोम की तरह।

रूप-रंग चाहे जैसा भी हो।
साँचा मिला उसे किसी का भी हो।
तासीर उसकी कहाँ ही बदलेगी।
उर में बसने वालों को जलता देख,
वो तो सौ दफा पिघलेगी।

इस सख्ती का लिबाज़ ओढ़े,
वो बेहद नाज़ुक है।
ख़ुशी के परदों के पीछे,
वो तो बैठी मायूस है।

खुद की ज़रा भी परवाह नहीं,
और दुनिया को बेपरवाह
जीना वो सिखाती है।
खुद तो जाने कितनी हताश है,
और दुनिया को मुस्कुराना
वो सिखाती है।

मासूम इतनी है,
की दिल हथेली पर
रख कर परोस देती है।
और प्यारी इतने,
की इन अंधेरों के नाम भी
रोज़ रोशनी का
एक टुकड़ा लिख जाती है।

वो....साथ चलना जानती है,
और साथ निभाना भी।
बेशक....
मोम की इस गुड़िया का
कोई जवाब नहीं।

©Dr Jyotirmayee Patel मोम की गुड़िया.....
ढल जाती है वो,
हर साँचे में
उस पिघले हुए मोम की तरह।

रूप-रंग चाहे जैसा भी हो।
साँचा मिला उसे किसी का भी हो।
तासीर उसकी कहाँ ही बदलेगी।
उर में बसने वालों को जलता देख,
वो तो सौ दफा पिघलेगी।

इस सख्ती का लिबाज़ ओढ़े,
वो बेहद नाज़ुक है।
ख़ुशी के परदों के पीछे,
वो तो बैठी मायूस है।

खुद की ज़रा भी परवाह नहीं,
और दुनिया को बेपरवाह
जीना वो सिखाती है।
खुद तो जाने कितनी हताश है,
और दुनिया को मुस्कुराना
वो सिखाती है।

मासूम इतनी है,
की दिल हथेली पर
रख कर परोस देती है।
और प्यारी इतने,
की इन अंधेरों के नाम भी
रोज़ रोशनी का
एक टुकड़ा लिख जाती है।

वो....साथ चलना जानती है,
और साथ निभाना भी।
बेशक....
मोम की इस गुड़िया का
कोई जवाब नहीं।

©Dr Jyotirmayee Patel मोम की गुड़िया.....

मोम की गुड़िया..... #Poetry