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मैं मुसाफ़िर मंज़िल की तलाश में चलता रहता हूँ। रोज़ स

मैं मुसाफ़िर मंज़िल की तलाश में चलता रहता हूँ।
रोज़ सूरज के साथ उठता और  ढलता  रहता हूँ।

जब भी पलट कर देखता हूँ अतीत के पन्नों  को !
शानदार दोहराता तो भूलों से संभलता रहता हूँ। 🎀 Challenge-390 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 4 पंक्तियों अथवा 40 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
मैं मुसाफ़िर मंज़िल की तलाश में चलता रहता हूँ।
रोज़ सूरज के साथ उठता और  ढलता  रहता हूँ।

जब भी पलट कर देखता हूँ अतीत के पन्नों  को !
शानदार दोहराता तो भूलों से संभलता रहता हूँ। 🎀 Challenge-390 #collabwithकोराकाग़ज़

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🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

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