तुम इंसान के रूप में औरत मैं इंसान के रुप में मर्द । इंसान लफ़्ज़ एक है लेकिन इसे कई अर्थ मिले । मेरे तेरे जिस्म की पहचान के लिए तुम महबूबा हो पत्नी हो दासी हो बेटी हो वेश्या हो। तुम्हें जिस नज़र से देखा दिखी पर मुझे किस नज़रिये से जाना मैं महबूब हूँ, पति हूँ, पिता हूँ, बेटा हूँ या यूं कहूँ आवारा, अय्याश, बेग़ैरत हूँ । तुम्हें लगता है में हमेशा से ऐसा हूँ ! एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते कराते आज हम कहाँ पहुँच गए पता है? समलैंगिकता ,एकांकी,लिवइन, बिना ज़िम्मेदारी के सबकुछ पाने की दौड़ में जानता हूँ तेरा जिस्म नुचा है और मेरी आत्मा । तुम एक राज़ हो ,मैं एक क़तरा तुम्हें समझना होगा और मुझे जज़्ब करना होगा । कभी तो ख़त्म करना होगा ये द्वंद प्रतिस्पर्धा को छोड़ अनुस्पर्धा का अनुसरण भी तो हो सकता है। क्या हम एक दूसरे के पूरक बनेंगे अपनी सदियों पुरानी विरासत की तरह । शिव है तो शक्ति है । शक्ति है तो शिव का वजूद है। #deepali suyal #इंसान #compare d suyal जब आपकी रचना ने दिल झकझोर दिया वहुत सोचा और तो कुछ नहीं समझ आया पर मुझे लगा हमारी जीवनशैली जो कि भारतवर्ष की बास्तविक जीवनशैली से बिल्कुल अलग है।मुगलों और अंग्रेजों की दासता नें हमें कर्तव्यवाद और उत्तरदायित्व बोध से सिर्फ भोगवाद की खाई में धकेल दिया है।पर जब हम अकेले होते है तो आत्मा अपनी विरासतें टटोलने लगती है। #स्त्री #पुरुष #पाठकपुराण #paidstory