शीत लहर से त्रस्त हम , करते बचने को अनगिन जतन सीमा पर रक्षा करते ,वे बर्फ की चादर में सुखा रह है अपना बदन क्या वे इंसान नहीं क्या उनमे प्रान नहीं तुम रोटी में माखन लगाओ तुम फूलो में आसन लगाओ तुम को किसी का ध्यान नहीं क्या वे इंसान नहीं क्या उनमे प्रान नहीं वो भी किसी माँ के राज दुलारे भाई किसी के ,किसी के प्रान प्यारे क्या उनके कोई अरमान नहीं क्या वे इंसान नहीं क्या उनमे प्रान नहीं तुम वातानुकुलित भवनो के वासी वे प्रहरी हमारे ,बारूद उनके काबा काशी दिन कोई ना होता ऐसा ,जिस देते वे बलिदान नहीं क्या वे इंसान नहीं क्या उनमे प्रान नहीं ©Kamlesh Kandpal #fauji