पत्थर था वो पर दिल की बनावट का था फूल कागज का था फक्त सजावट का था। फरेब की सियाही से लिखा खत वफा का प्यारी भरी बातें दगाबाजी का लिखावट था। अपना बन के दाखिल हुआ वो घर में मेरे कदमों में साफ उसके चोरों सा आहट था। दिल में रहकर पीठ पर वार किया ज़ालिम ने कुछ ऐसा ही अंदाज़ उसकी अदावत का था। पत्थर था वो पर दिल की बनावट का था फूल कागज का था फक्त सजावट का था। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ दोमुँहा