लबों को छू कर उनके एक नादानी कर दिया, संगमर्मर की मूरत को भी दीवानी कर दिया। नाफ़ में उसकी, मिरी हसीं दुनिया बसती थी, चूम कर हर दफा, उसे जावेदानी कर दिया। जिस्म छोड़, रूह तक को भी बेचैन कर दिया, शब़-ए-वस्ल ने हर रोम को रूमानी कर दिया। पसीने से तर-बतर हो गये थे जिस्म दोनो के, छू कर उनको हमने, पानी पानी कर दिया। थोड़ा कसमसाई, फिर हौले से वो मुस्कराई, 'इकराश़' यूँ दो से तीन की कहानी कर दिया। मोहब्बत के बाद वस्ल की रात की एक दास्ताँ बयां करती एक रचना। एक महबूब की सबसे खुबसूरत पल की कहानी मेरी जुबानी। कुछ अलग हटकर लिखने की कोशिश की है इस बार। आपका अपना, अंजान 'इकराश़'