एक ही इंसान के बहुत से रंग होते हैं.. किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा... हर इंसान हर एक के लिए अच्छा नहीं हो सकता...
ऐसा ही होता है वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता हमेशा अच्छा नहीं रहता...
रिश्तों और जीवन के तानेबाने कभी सुलझे नहीं रहते.. उलझे रहें तो ही मज़ा है वैसे... एकरसता बहुत उबाऊ हो जाती है.. नहीं???
इन्हीं सब ऊहापोह में रची ये कविता मिली मुझे.. किसने लिखी है नहीं पता.. लेकिन सार्थक लिखी है... सो रोक नहीं पाई पढ़ने से खुद को... सुनिए और बताइए कैसी लगी... दिल तक पहुंचे तो दाद दीजियेगा.. लिखने वाले को भी और पढ़ने वाले को भी.. 😁❣️❣️❣️❣️
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