The three magical words सुनो, जानती हो , रोज़ सोचता हूँ एक ख़त लिखूँ तुमको, वही ख़त जो मैंने अपने इश्क़ के पहले दिन से लिखना चाहा था। लेकिन कभी लिख नहीं पाया लेकिन सोच रहा हूँ आज लिखूँ, फिर अगले ही पल सोचता हूँ कि क्या महसूस कर पाओगी उनको क्योंकि शब्दों को पढ़ा नही महसूस किया जाता है। क्या तुम महसूस कर पाओगी कि कितना अकेला हो गया हूँ मैं? तुम जो खो गयी हो ना, जानती हो दिन बहुत उदास रहने लगे है मेरे और रात मुझे घूरती है हर रोज़ बुझने तक। छत मेरी सबसे पसंदीदा जगह हो गयी है, कभी-कभी तो पूरी रात वहाँ बीत जाती है। हाँ, सच मे पूरी रात ! कभी कभी तो लैम्पपोस्ट के इन लाइटों से भी चिढ़ होती है, जी करता है कि फोड़ दूँ इनको। कभी मन करता है रोड पर चल रहे या आसपास रह रहे हर किसी से बात करूं और कभी सोचता हूँ कि इतना शांत हो जाऊं कि किसी की आवाज़ ही ना सुनाई दे, और सुनूँ तुम्हारी साथ की गयी हर बात को। मुझे अपने आस पास की हर चीज़ महसूस होती है। नल से टिप-टिप रिसता पानी, घड़ी की टिक-टिक करती आवाज़, पंखे का शोर, अगर कुुछ नहींं सुनाई देती हैै तो तुम्हारे लौट आने की उम्मीद। और भी बहुत कुछ है लिखने को जो मेरे शब्द समेट नहीं पा रहे, और कलम लिख नहीं पा रही, सो बस। हाँ कभी कभी रो भी लेता हूँ, ( लड़के भी रोते हैं ) आज अकेलापन सारी सीमाएं पार कर रहा है। सुनो ना! अगर हो सके तो लौट आओ मैं ये तो नहीं कहूंगा कि मैं दुनिया मे सबसे ज़्यादा प्यार दूंगा तुमको, लेकिन ये वादा है तुमसे कि मेरी दुनिया के सारे प्यार पर सिर्फ तुम्हारा हक़ होगा। लौट आओ ना प्लीज़....😢 रजां इन मूड...