कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी सहरा की तिश्नगी थी सो दरिया शराब पी अपनों ने तज दिया है तो ग़ैरों में जा के बैठ ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब न तन्हा शराब पी तू हम-सफ़र नहीं है तो क्या सैर-ए-गुलिस्ताँ तो हम-सुबू नहीं है तो फिर क्या शराब पी Shraab