बढ़ा है ताप सूरज का, गगन से आग ही बरसे। भलाई है इसी में अब,कहीं निकलें नहीं घर से। जलाती है तपिश ऐसी, कि रेगिस्तान की राहें- मिले पानी न पीने को, गला इक बूँद को तरसे। #मुक्तक #गर्मी_से_बुरा_हाल #विश्वासी