हाँ, मैं एक वैश्या हूँ, मेरे इस नाम की सार्थकता किससे पूरी होती है यह जानना चाहती हूँ... हाँ, मैं एक वैश्या हूँ, क्या तुम्हारी नजरें मुझे इक नारी के रूप में नही देखना चाहती... हाँ मैं एक वैश्या हूँ, हर रोज ख़ुद को इक दुल्हन की तरह सजाती हूँ क्या तुम्हारी नजरें भी मुझे उसी रूप में निहारना चाहती है... हाँ मैं एक वैश्या हूँ, कई सपनों को मैंने दफनाया है क्या तुम फिर से उन सपनों को मेरे अंदर ज़िन्दा करना चाहते हो... हाँ मैं एक वैश्या हूँ, तकती रहती हूँ उस राह को जहाँ से कोई तो इंसान बनकर आए क्या तुम मेरे लिए वो फरिश्ता बनकर आ सकते हो... ©Neelam हाँ, मैं एक वैश्या हूँ, मेरे इस नाम की सार्थकता किससे पूरी होती है यह जानना चाहती हूँ... हाँ, मैं एक वैश्या हूँ, क्या तुम्हारी नजरें मुझे इक नारी के रूप में नही देखना चाहती...