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तुम खड़ी रहो मेरे सामने ख़ुद को ज़रा मैं निहार लू, आ

तुम खड़ी रहो मेरे सामने ख़ुद को ज़रा मैं निहार लू, 
आँखों में आँखे डालकर कुछ रूप तुमसे उधार लू, 
हैं चाँद भी मद्धम तुम्हारे सामने और क्या कहुँ, 
ख़ुद को तुमसे सींचकर कुछ नूर क्यों ना उतार लू !! दिवाकर....
तुम खड़ी रहो मेरे सामने ख़ुद को ज़रा मैं निहार लू, 
आँखों में आँखे डालकर कुछ रूप तुमसे उधार लू, 
हैं चाँद भी मद्धम तुम्हारे सामने और क्या कहुँ, 
ख़ुद को तुमसे सींचकर कुछ नूर क्यों ना उतार लू !! दिवाकर....