एक वो थे कि मिट्टी तेल के दिए जलाकर पूरी किताबें पढ़ जाते थे और आज हम कई बल्बों की रोशनी करके भी मोबाइल बिना पढ़ ही नहीं पाते हैं.. वो भी समय था जब लोग एक ढिवरी जलाकर कम रोशनी में भी , तमाम कीड़ों, मकोड़ों के आतंक में पढ़ लेते थे । क्योंकि किताबों में ही जीवन था , और उन्हें पता था कि मिट्टी का तेल अब अगले महीने में ही सरकारी गल्ले की दुकान पर मिलेगा। वो दिन अच्छे थे। और आज सारी सुविधाएं हर घर वो चाहे कोई छोटा गांव हो या बड़ा शहर हर जगह बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं। इसके बावजूद लोग पढ़ने की बजाय , मोबाइल का डेटा खत्म करने में लगे रहते हैं ,रात 12 बजे तक जब तक दूसरे दिन का डेटा आ न जाए ।