Alone ~ कोई नहीं युवा शुभचिंतक ~ कोई नहीं युवा शुभचिंतक, चारों दिशाओं से आ परी संकट। कोरोना तो यूं ही बदनाम हो चला, बेरोजगारी से बड़ी क्या खाक होगी संकट? कोई नहीं युवा शुभचिंतक। जिस देश में युवा बहुत हो, फिर वे कैसे बन गए आफत। अब तो युवा भी बट गया, नहीं दिखता अब जोश आजकल। धर्म राजनीति के चक्कर में बनकर रह गए सारे मर्कट। कोई नहीं युवा शुभचिंतक। भूख प्यास और दर्द को सह कर, श्रमिक भाई तो पहुंचे अपने घर। पर कोई ऐसे भी बच्चे हैं, जी रहे जीवन रोज मर मर कर। कब खत्म होगी यह संकट? कोई नहीं युवा शुभचिंतक। ~विकाश सिंह जिंदगी में पहली बार कोई काव्य लिखने का साहस किया।