वो पौधा ******* प्रेम की जिस पौधे को मैने सींचना छोड़ दिया था आज उसमे फिर नई कोपलें फूटी है। मैं बस देखता रहा उस पथिक को जिसने , रासाबृष्टि की इसके इर्द-गिर्द कोई हलचल,कोई प्रतिरोध नही सिर्फ एक सवाल यह प्रयास क्यों? क्या इसमे फिर से फूल लगेंगे? जी चाहा, रोकूँ उस पथिक को पर नजर उस बेजान होते पौधे पर पर पड़ी दर्द उभड़ आया अनायास ही हाथों ने सींचते हाथों को थाम लिया तरुण बृक्ष ने हर्सोन्मादित हो अंगड़ाई ली हवा के झोंको ने मादकता दी नव पत्तियों ने श्रृंगार दिया वह प्रसस्त, पथ पर बढ़ चला। हमारी नजरे मिली नयनो में खुशी और आनंद का उत्सव था अचानक विचारों के तरंग से झंकृत हुआ एक बार पतझड़ फिर खड़ा था उसे श्रृंगारहीन और बेजान करने को @दिलीप कुमार खां"""अनपढ़"" #वो पौधा