इश्क़ की धूप में दिल पिघलने लगे, दो क़दम जो चले तो पैर जलने लगे। जेठ की दोपहरी सा ये एहसास है। धड़कनें बढगयीं मन मचलने लगे। ढूंढने चल दिए हम नदी प्यार की, प्यासे अधरों को मीठा सा पानी मिले। 🎀 Challenge-233 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।