दिल की दुनिया में ग्रह बहुत, तुम उपग्रह सी मँडराती हो..! सूरज सा है तेज़ यूँ तुम में, चाँद की शीतलता अपनाती हो..! कभी सूखी बँजर जमीं सी, कभी आँखों में यूँ नमीं सी..! ब्रह्माण्ड सा रखती रूप तुम्हीं, इन आँखों को लुभाती हो..! मन का पँछी बंद ख्वाहिशों के पिंजरे में, तुम उम्मीद की किरण दिखाती हो..! रोते दिल को मुस्कान से अपनी, तुम बख़ूबी हँसाती हो..! उतरती जमीं में लेकर महिमा अपनी, काबिलियत से मुरझाये मन में पुष्प खिलाती हो..! मिलते नहीं हम तुम किनारे जैसे नदियों के, नभ की नक्काशी से मन में तुम काशी बसाती हो..! ©SHIVA KANT #Hindidiwas #dilkiduniya