एक बेवफा को बेवफा कहने मे कतराने लगे हैं, हम इस कदर आशिक़ी निभाने लगे हैं, जिन्हे भूलने मे लगा था एक अरसा, वो मुझे बेपनाह याद आने लगे हैं, कैसा जादू है ये उसका जो चाहकर भी ना उतर रहा, हम उसकी सुध मे खुद को भूल जाने लगे हैं, जमाना फिर से पागल बुलाने लगा है हमें, हम दिन -रात जो उसका नाम लेकर मुस्कुराने लगे हैं, जिन गलियों से तोड़ दिया था मैंने वास्ता कभी, हम फिर उनमे आने -जाने लगे हैं, कैसा खुमार चढ़ा है मुझपर ये मोह्हबत का, हम अपने कातिल को भी गले से लगाने लगे हैं, एक दफा और दगा ही ना मिलेगा खुद को उनका बनाकर, हम दूर होकर वैसे ही मर जाने लगे हैं ©arpit shukla(मेरे एहसास) #peace बेबाक कन्नौज