साहित्य प्रेम पत्र मेरी प्रियतमा, तुम्हारे विरह में मेरे जीवन के पथ कंटकमय हो चले हैं।तुम मेरे जीवन का अभिन्न अंग हो।जिस प्रकार प्राण तन के बिना अपूर्ण है।वायु खुशबू के अभाव में अचलायमा न है।संसार सूर्य के बिना निश्तेज है।उसी प्रकार मेरा जीवन तुम्हारे विरह में,चातक पक्षी के समान हो गया है।जो चंद्रमा के प्रेम में अपना सारा जीवन उसे देख कर व्यतीत करता चला जाता है।बिना किसी आशा के।कहीं मेरा जीवन भी तुम्हारी प्रतीक्षा करते-करते यूँ ही न व्यतीत हो जाये।। ©Sachin Gupta #sahitya #patra #WForWriters