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जख्म हो या मरहम, सब कुछ धीरे धीरे हौले हौले, गुजर

जख्म हो या मरहम,
सब कुछ धीरे धीरे हौले हौले,
गुजर जाता है,
आंशु हो,
या मुश्कान सब कुछ ढल जाता है,
दिन रात में और रात फिर से दिन में ढल जाता है,
वख्त ने बदलते अंदाज पर,
कुछ साज़ लिखे है,
गुज़रते हुए बदलाव पर,
कुछ अल्फ़ाज लिखें है.......

©Prashant Roy
  #hardtime #सब ढल जाता है।
prashantroy0606

Prashant Roy

Bronze Star
New Creator

#hardtime #सब ढल जाता है। #कविता

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