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वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक

वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन 
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा 
~साहिर लुधियानवी


कुछ यूं उठा वो बिस्तर से फिर मिला ही नहीं
मै सोचता था जिसको हँसकर है विदा करना।
~स्याह

©Sayah~
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