ऐ जिंदगी, तू क्यों मुझे इतना रुलाती है जब भी खुश होना चाहूं, मेरी मुस्कुराहट छीन जाती है ऐ जिंदगी तू क्यों मुझे इतना रुलाती है माना कि गलती मेरी ही होती है पर गलती से बड़ी सजा क्यों दे जाती है ऐ जिंदगी, तू क्यों मुझे इतना रुलाती है जब भी खुद के बिखरे टुकड़े समेट लेती हूं आंधियों का दौर चला देती है ऐ जिंदगी, तू क्यों मुझे इतना रुलाती है ऐ जिंदगी, तेरे दिए दर्द अब नासूर बन रहे है मुझे मौत की चाहत हो,ऐसे फितूर बन रहे है मेरे सपनों को हकीकत से दूर कर रहे है मुझे मरने को मजबूर कर रहे है मेरे गुरुर को चकनाचूर कर रहे है मुझे हो जाये,खुद से नफरत ये कोशिश भी भरपूर कर रहे है।।