मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे कहीं नजर नहीं आई , सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन अँधेरों में चलते चलते ! न तो साया ही साथ था मेरे न कोई रास्ता दिखाने वाला , जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ समझ में भी नहीं आने वाला ! फिर भी एक मुस्कान थी चेहरे में और मैं चला ही जा रहा था , न मुझे उस रोशनी की फिकर थी न इन अँधेरों का गम था ! क्यों की इन अँधेरों में चलते चलते अब मैं इतना समझ चुका था , यही जिन्दगी है यहाँ रोशनी सबके नसीब में नहीं होती ! कुछ जीते हैं ताउम्र रोशनी में अँधेरों की उन्हे फिकर नहीं होती , और कुछ के नसीब में यहाँ अँधेरों में ही मौत लिखी होती ! मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे कहीं नजर नहीं आई , सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन अँधेरों में चलते चलते ! न तो साया ही साथ था मेरे न कोई रास्ता दिखाने वाला , जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ