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मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे कहीं नजर नहीं आ

मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे
कहीं नजर नहीं आई ,
सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन
अँधेरों में चलते चलते !

न तो साया ही साथ था मेरे न कोई
रास्ता दिखाने वाला ,
जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ
समझ में भी नहीं आने वाला !

फिर भी एक मुस्कान थी चेहरे में और मैं
चला ही जा रहा था ,
न मुझे उस रोशनी की फिकर थी न इन
अँधेरों का गम था !

क्यों की इन अँधेरों में चलते चलते अब
मैं इतना समझ चुका था ,
यही जिन्दगी है यहाँ रोशनी सबके
नसीब में नहीं होती !

कुछ जीते हैं ताउम्र रोशनी में अँधेरों की
उन्हे फिकर नहीं होती ,
और कुछ के नसीब में यहाँ अँधेरों में ही
मौत लिखी होती ! मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे
कहीं नजर नहीं आई ,
सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन
अँधेरों में चलते चलते !

न तो साया ही साथ था मेरे न कोई
रास्ता दिखाने वाला ,
जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ
मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे
कहीं नजर नहीं आई ,
सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन
अँधेरों में चलते चलते !

न तो साया ही साथ था मेरे न कोई
रास्ता दिखाने वाला ,
जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ
समझ में भी नहीं आने वाला !

फिर भी एक मुस्कान थी चेहरे में और मैं
चला ही जा रहा था ,
न मुझे उस रोशनी की फिकर थी न इन
अँधेरों का गम था !

क्यों की इन अँधेरों में चलते चलते अब
मैं इतना समझ चुका था ,
यही जिन्दगी है यहाँ रोशनी सबके
नसीब में नहीं होती !

कुछ जीते हैं ताउम्र रोशनी में अँधेरों की
उन्हे फिकर नहीं होती ,
और कुछ के नसीब में यहाँ अँधेरों में ही
मौत लिखी होती ! मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे
कहीं नजर नहीं आई ,
सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन
अँधेरों में चलते चलते !

न तो साया ही साथ था मेरे न कोई
रास्ता दिखाने वाला ,
जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ

मीलों चलने के बाद भी जब रोशनी मुझे कहीं नजर नहीं आई , सोचा बैठ लूँ थोड़ा थक गया हूँ इन अँधेरों में चलते चलते ! न तो साया ही साथ था मेरे न कोई रास्ता दिखाने वाला , जंगल में था या शहर में अँधेरों में कुछ