हजार लोग हजार बात बोलते थे अब भी बोलते है, ये मै लिख कर आयी हूं । पर बोलने वाला सजा भोगा मेरा कुछ नहीं गया। बूढ़ी एक थी बोली कि बेटी हुई है वो भी लंगड़ी। मा बाप सुन कर चुप रहे गए। मै चुप नहीं रहे पाई। बचपन बीता उसके साथ बूढ़ी और बूढ़ी हो गई। एक दिन तबीयत खराब हुआ hospital me admit करना पड़ा। उसी दिन मुझे घूमने जाना था, घर में जो दो लोग थे वो गुस्सा कर ने लगे (और करना एक अच्छे इन्सान का काम है क्यूं की एक इन्सान बीमार था)। मुझे बूढ़ी की वो पुरानी बाते याद थी , मुझे अच्छा नहीं लगा कि उसके लिए मुझे खुश नहीं होने दी रहे घर में। मूह से निकाल गया ये बूढ़ी मर क्यूं नहीं जाती और 5 minutes के बाद phone Baja, खबर ये था की बूढ़ी चल बसी। उस दिन बिल्कुल नहीं रूई मै क्यूं की हर बार की तरह उस दिन भी मै कुछ नहीं कर रही थी पर भगवान नाम का कुछ होता है।