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माता-पिता, मित्र-परिजन और समाज के बीच रहकर व्यक्ति का एक नया व्यक्तित्व तैयार हो जाता है। वह सदा इस बोझ से दबा रहता है कि समाज उसको बुरा न मान ले। वह अच्छे से अच्छा आचरण करके समाज में अपना सम्मान बनाए रखने का प्रयास करता रहता है। यही भाव उसमें नए संस्कार प्रतिपादित करता है।
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यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति की मूल प्रकृति पूरी उम्र ढकी ही रहती है। वह संसार में क्यों आया है, और वह कौन है, इसका आभास मात्र भी उसे नहीं हो पाता। किन्तु, उसका यह मूल स्वरूप भी उम्र भ