#OpenPoetry मेरी मां जब देखी ना तूने मेरी सूरत तुझमें ही बन रही थी मेरी मूरत कैसे तूने अपनी जान मुझसे बाट ली कैसे अपने जिस्म में तूने , मुझे पनाह दे डाली नौ महीने मेरा बोझ उठा कर तू चली सिर्फ इसलिए , कि खिलने वाली है कली जब धड़कने लगे एक जिस्म में दो दिल मां शब्द को कर लिया तूने हासिल मां सुनने के लिए तकलीफों के बीच झूल गई मुझे पाते ही सारे दुःख दर्द भूल गई कर दी मुझ पर तूने अपनी ममता की बोछार मेरे लिए अपने आप को भी कर दिया तूने न्योछावर बदल कर रख दी परिभाषा तूने इस जहान की जीती जागती मूरत है तू भगवान की #OpenPoetry #nojotohindi this poem for all mothers but special feel who have daughter