Nojoto: Largest Storytelling Platform

वक्त के साथ रिश्तो को बदलते देखा है दौलत के लिये अ

वक्त के साथ रिश्तो को बदलते देखा है
दौलत के लिये अपनो को लडते देखा है !
लिये आग चढा था जो सुबह आसँमा पे 
शाम उस सूरज को पिघलते देखा है !

तैरा था जो लहरो के विपरीत हरदम 
साहिल पे उस जहाज को डूबते देखा है !
हुआ करती थी जहाँ संस्कारो की बाते 
हाँ  मैने उन घरो को टूटते देखा है ! मेरे संकलन जब भी अकेला होता हूँ पढ़ता हूँ और अक़्सर सबके साथ साझा करता हूँ ।
ऐसी ही कुछ संकलित पंक्तिया-
25-12-013 को #प्रियंका त्रिपाठी की वाल से की थी आपके सामने प्रस्तुत हैं -----
:बैठा था कल तक जो किस्मत के भरोसे
उस शख्स को  हाथ मलते देखा है !
माँज के बर्तन जिसने पाला था बच्चो को
घर के बाहर उस माँ को सोते देखा है !
:
वक्त के साथ रिश्तो को बदलते देखा है
दौलत के लिये अपनो को लडते देखा है !
लिये आग चढा था जो सुबह आसँमा पे 
शाम उस सूरज को पिघलते देखा है !

तैरा था जो लहरो के विपरीत हरदम 
साहिल पे उस जहाज को डूबते देखा है !
हुआ करती थी जहाँ संस्कारो की बाते 
हाँ  मैने उन घरो को टूटते देखा है ! मेरे संकलन जब भी अकेला होता हूँ पढ़ता हूँ और अक़्सर सबके साथ साझा करता हूँ ।
ऐसी ही कुछ संकलित पंक्तिया-
25-12-013 को #प्रियंका त्रिपाठी की वाल से की थी आपके सामने प्रस्तुत हैं -----
:बैठा था कल तक जो किस्मत के भरोसे
उस शख्स को  हाथ मलते देखा है !
माँज के बर्तन जिसने पाला था बच्चो को
घर के बाहर उस माँ को सोते देखा है !
:

मेरे संकलन जब भी अकेला होता हूँ पढ़ता हूँ और अक़्सर सबके साथ साझा करता हूँ । ऐसी ही कुछ संकलित पंक्तिया- 25-12-013 को #प्रियंका त्रिपाठी की वाल से की थी आपके सामने प्रस्तुत हैं ----- :बैठा था कल तक जो किस्मत के भरोसे उस शख्स को हाथ मलते देखा है ! माँज के बर्तन जिसने पाला था बच्चो को घर के बाहर उस माँ को सोते देखा है ! : #पंछी #पाठक #हरे