वक्त के साथ रिश्तो को बदलते देखा है दौलत के लिये अपनो को लडते देखा है ! लिये आग चढा था जो सुबह आसँमा पे शाम उस सूरज को पिघलते देखा है ! तैरा था जो लहरो के विपरीत हरदम साहिल पे उस जहाज को डूबते देखा है ! हुआ करती थी जहाँ संस्कारो की बाते हाँ मैने उन घरो को टूटते देखा है ! मेरे संकलन जब भी अकेला होता हूँ पढ़ता हूँ और अक़्सर सबके साथ साझा करता हूँ । ऐसी ही कुछ संकलित पंक्तिया- 25-12-013 को #प्रियंका त्रिपाठी की वाल से की थी आपके सामने प्रस्तुत हैं ----- :बैठा था कल तक जो किस्मत के भरोसे उस शख्स को हाथ मलते देखा है ! माँज के बर्तन जिसने पाला था बच्चो को घर के बाहर उस माँ को सोते देखा है ! :