एक दिन ऐसा होगा कि दर्दों से जो डोर बाँधी है ना मैंने,एक दिन ऐसा होगा की सब गिरहें खोल दूंगी।लफ्ज़ जो कामिल हुए नहीं इस मोहब्बत में,उनके निशान आसूंओं से ही भीगा ख़तम करूंगी।।और जा माफ़ी और आज़ादी दोनों दी मैने मोहब्बत से,अब तेरे इंतज़ार में नहीं उलझना मुझे आने वाले पल से ख़ुद को आबाद करूंगी।।