वो टियुवल पर नहाना, कोशो तक पैदल जाना। खेतों की हरियाली, वो पेड़ों की डाली। वो मस्त हवायें, पेड़ों की ठंडी छाँव। वसंत का आना, पेड़ों पे जवानी छाना। मुझे पागल सा कर देता है। खेतों की कटाई, ये पेड़ों की छटाई। ये कोयल की कुहू - कुहू, ये चिड़ियो की चु-चु। ये बारिश की बुदें, ये मिट्टी की खुशबु। ये गर्मी का आना, पेड़ों के नीचे टाइम बीताना। मुझे पागल सा कर देता है। खेतों में जाकर पानी लगाना, पानी के लिए वो गुलें बनाना। ताजी मिट्टी में पैरों को दबाना, मिट्टी के घर बनाना। पेड़ों पर आमों का आना, आंधी में झड जाना। उन आमों को उठाने, खेतों में जाना। मुझे पागल सा कर देता है। दूसरों के खेतों से तरबूज चुराना, कुएं में डाल ठंडा कर खाना। भरी दोपहरी में वो साइकिल का चलाना, कुछ लडकों को उसके पीछे दौड़ना। चारे की गठरी को सिर पर ले जाना, बीच राह में उसे गिराना। वो यादें फिर जी पाना, और सोच कर मुस्कराना। मुझे पागल सा कर देता है। कुछ बचपन की यादें...