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बुढ़ापा कहां अब उस हंसी में खुशी दिख रही थी बस


बुढ़ापा

कहां अब उस हंसी में
 खुशी दिख रही थी 
बस की खुश हूं 
यह दिखाने के लिए वह मुस्कुरा रही थी 
चाहा एक छायाचित्र लेना 
तो वह इतरा रही थी
झुरियों से पूर्ण वह चेहरा
 एक सूखे फूल की भांति मुर्झा सा था गया 
इसी बीच वह कहती गई 
पहले मैं भी तुम्हारी ही भांति 
ऐसी खिली हुई हुआ करती थी 
कितनी सुहानी वह बचपन और जवानी थी 
बोली वह .................….…………
जीने की तो अब इच्छा ही नहीं रही 
सोचती हूं कि अब समय से पहले ही चली जाऊं 
  इस वाक्य को सुन तो मुझे बहुत परेशानी हुई
 हालात कुछ ऐसे थे 
कि कुछ कह न पाई 
क्षणिक शांति थी छाई
इस बार वह कहती गई 
और मैं मात्रा सुनती ही रह गई ।

©Bhanu Priya
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