आस (उम्मीद) शहर शहर बस्ती बस्ती आग लगी पड़ी है, कुछ लोग बुझा रहे हैं कुछ लोग घी डाल रहें हैं, इंसानियत दबी है, कुचली है, फ़िर भी खड़ी है, सत्ताधारी इक तरफ़ कसीदे कस रहें हैं, तो इक तरफ़ रहम के फरमान सुनाए जा रहें हैं, लेकिन वो सौगात भी पहुंच कहाँ तक रही है, बेरोज़गार हैं लोग गांवों की तरफ़ पलायन कर रहें हैं, कि फ़िर से दौड़ेंगी ज़िंदगी, शहर बस्ती में काम मिलेगा, पेट ख़ाली है आसमां तले जानें कैसे कितनी फ़िक्र में, कभी तो करवट लेगा वक़्त, इसी आस में सोया इंसान है| आस (उम्मीद) शहर शहर बस्ती बस्ती आग लगी पड़ी है, कुछ लोग बुझा रहे हैं कुछ लोग घी डाल रहें हैं, इंसानियत दबी है, कुचली है, फ़िर भी खड़ी है, सत्ताधारी इक तरफ़ कसीदे कस रहें हैं, तो इक तरफ़ रहम के फरमान सुनाए जा रहें हैं, लेकिन वो सौगात भी पहुंच कहाँ तक रही है, बेरोज़गार हैं लोग गांवों की तरफ़ पलायन कर रहें हैं,